आरिफ खान की रिपोर्ट
काशीपुर।पसमांदा मुस्लिम समाज के उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष शाहिद हुसैन मंसूरी ने कहा कि ‘मेरी लड़ाई धार्मिक नहीं, मेरी लड़ाई सामाजिक है, जहां ऊंची ज़ाति के मुसलमानों ने पसमांदा मुसलमानों को किसी भी क्षेत्र में बराबरी का दर्जा नहीं दिया, बल्कि उनका शोषण किया जो लोग सब मुसलमानों की बराबरी की वकालत कर रहे हैं, उनको मुसलमानों की पसमांदगी कभी नजर नहीं आई.शाहिद हुसैन मंसूरी ने कहा कि ‘पसमांदा मुसलमानों की बदहाली को लेकर समाज में फैली भेदभाव की नीति पर काका कलेनकर आयोग, रंगनाथ मिश्र कमीशन, जस्टिस राजिंन्द्र सच्चर कमीटी ने अपनी रिपोर्ट के ज़रिये मोहर लगाई है, यही नहीं अभी हाल में ही देश के प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुसलमानों की बदहाली को लेकर के कई बार गहरी चिंता जताई है, जो इस बात को साबित करती है कि देश में 85% आबादी वाले पसमांदा मुसलमानों के हालात बद से बदतर है. शाहिद हुसैन मंसूरी ने कहा कि 15 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद जब हमने पसमांदा मुसलमानों की समस्याओं को लेकर के देश में जब जन आंदोलन खड़ा किया तो जमींदारी सोच रखने वाली राजनैतिक पार्टियों और उन पार्टियों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल सरकारी मौलानाओं के पेट में दर्द हो रहा है.’
शाहिद हुसैन ने कहा कि ‘जब पसमांदा मुसलमान अपना हक़ पाने के क़रीब होते हैं तो पसमांदा दुश्मन सोच के लोग इस्लाम की दुहाई देकर हमारे आंदोलन को कमज़ोर करने का प्रयास करते हैं. शाहिद हुसैन मंसूरी ने कहा कि जब पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार संविधान सभा में आरक्षण को ख़त्म करने की बात कर रहे थे तो बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने दलितों के आरक्षण ख़त्म करने का विरोध किया. उस वक़्त सरदार वल्लभ भाई पटेल ने पिछड़ों के आरक्षण खत्म करने का विरोध किया, लेकिन संविधान सभा में मौजूद मुसलमान दलित मुसलमानों और पिछड़े मुसलमानों के आरक्षण पर खामोश क्यों थे?.
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