February 24, 2025

क्या पत्रकारिता का धर्म केवल खामोश रहना है,आखिर फेसबुकिया की सच्चाई दिखाने पर क्यों उठा काशीपुर के एक पत्रकार के दर्द

काशीपुर : दलाली के नाम पर लोगों से लाखों की ठगी करने वाले की खबर प्रकाशित होने के बाद एक पत्रकार के दर्द हो उठा और अपनी गोलमोल बातों में अपना दर्द झलकने की कोशिश की है। आज एक वेबसाइट पर किसी एक पत्रकार द्वारा खबर प्रकाशित की गई। कैसे पत्रकारिता का गिरता स्तर दिखाकर सच्चाई को रोकने की कोशिश की जा रही है कहीं ना कहीं ऐसा लगता है खबर पढ़ने के बाद विकास गुप्ता की ठगी में हिस्सेदरी में इस पत्रकार का भी तो रोल नहीं।

काशीपुर का एक पत्रकार भले ही अपने आप को सीनियर समझता हों लेकिन वास्तव हकीकत सिर्फ चापलूसी और दिखावे की पत्रकारिता करता हैं। असल में पूरी वेबसाइट खंगाले के बाद भी उस पत्रकार की वेबसाइट में एक खबर ऐसी नहीं लगी जो जनता के हितों के लिए उजागर किया हो किसी बड़े माफिया के खिलाफ आज तक कोई खबर नहीं लगाई

पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सच्चाई को उजागर करना और समाज के सामने वास्तविकता रखना है। लेकिन जब कोई पत्रकार यह सवाल उठाए कि मीडिया किसी अपराधी को बेनकाब क्यों कर रहा है, तो सवाल उठता है कि आखिर वह किसकी तरफ है सत्य के या अपराध के?

अगर कोई ठग, जो खुद को पत्रकार बताकर ठगी कर रहा है, को बेनकाब किया जा रहा है, तो यह पत्रकारिता के गिरते स्तर का संकेत कैसे हुआ? क्या असली खतरा यह नहीं कि कुछ लोग अपराधियों के समर्थन में खड़े होकर सच्चे पत्रकारों को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं?

जब एक फेसबुकिया खुद को पत्रकार बताकर पुलिस कार्यवाही से बचाने के नाम पर लाखों की ठगी करता है, तो क्या यह अपराध नहीं? क्या जनता को सच बताना पत्रकारिता के खिलाफ है?या पत्रकारिता का धर्म नहीं है

कहा जा रहा है कि मीडिया ने आरोपियों को दोषी करार दे दिया। लेकिन क्या यह सच नहीं कि पुलिस की जांच और अदालत की कार्रवाई जनता की नजरों में तभी आती है जब मीडिया उस पर रिपोर्ट करता है? अगर हम चुप हो जाएं, तो क्या समाज को यह पता चल पाएगा कि कौन पत्रकारिता के नाम पर ठगी कर रहा था

जब कोई गैंग पत्रकारिता के नाम पर ठगी कर रहा हो, तो क्या मीडिया को खामोश रहना चाहिए?
जिस व्यक्ति और उसके गैंग का भंडाफोड़ हम कर रहे हैं, उसने पत्रकारिता को बदनाम करने का काम किया है। क्या उसकी करतूतों को उजागर करना गलत है? क्या जनता को यह बताना अपराध है कि कोई पुलिस की कार्रवाई से बचाने के नाम पर लाखों की ठगी कर रहा है?

अगर कोई पत्रकार यह लिख रहा है कि काशीपुर की पत्रकारिता संक्रमण का शिकार हो रही है, तो क्या वह यह भी बताएंगे कि संक्रमण फैला कौन रहा है? वे लोग जो सच्चाई दिखा रहे हैं या वे जो अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं?

अगर कोई अपराधी समाज को धोखा दे रहा है, तो क्या उसकी ‘सामाजिक प्रतिष्ठा’ को बचाना मीडिया की जिम्मेदारी है? या फिर मीडिया का कर्तव्य है कि वह जनता को सच बताए, ताकि लोग ऐसे ठगों के जाल में न फंसें?

जब भी पत्रकार किसी बड़े घोटाले या अपराधी गिरोह का खुलासा करते हैं, तो उन पर दबाव डाला जाता है, उन्हें धमकियां दी जाती हैं और उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया जाता है।

क्या उन पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कोई लेगा, जो सच्चाई के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं?
क्या कोई इस बात की गारंटी देगा कि अपराधियों के खिलाफ खबर चलाने पर पत्रकारों को झूठे मामलों में नहीं फंसाया जाएगा?

क्या पत्रकारों को सिर्फ इसलिए बदनाम किया जाएगा कि उन्होंने प्रभावशाली लोगों के खिलाफ खबर चला दी?

पत्रकारिता का धर्म सच्चाई को सामने लाना है, न कि अपराधियों को बचाना। अगर सच्चाई को उजागर करना किसी को कड़वा लगता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि पत्रकारिता गलत हो रही है—बल्कि यह दर्शाता है कि कुछ लोग अपराधियों के साथ खड़े हैं।

अब फैसला जनता करे कि उसे सच के साथ रहना है या झूठ के साथ? और क्या पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए समाज को आगे आना चाहिए या नहीं?