April 20, 2025

journalism courses in university My life

journalism courses in delhi university गालिबन जर्नलिज्म करते हुए 7 या 8 साल हो गए। गली कूचे सब छान मारे। अच्छे से अच्छे शहर में काम कर लिया, कर रहा हूं। सामाजिक एतबार से पावरफुल पद और कद में अच्छे से अच्छे और बुरे लोगों से तालुककात हैं। ना इन रिश्तों पर गुरूर है ना कोई दिखावा।

हां मुश्किल वक्त में साथ देने वाले भाई जैसे दोस्त हैं। कमाए हुए तालुक्क्कआत हैं। दुआएं और सर पर हाथ फेरने वाले मां बाप, भाई बहन हैं।

आज भी रोड किनारे लगे ठेले पर खाने के साथ महंगे से महंगे होटल में खाना खा लिया। अब भी अल्लाह का शुक्र है, सही वक्त पर हलाल खाना और अच्छा खाना अल्लाह खिला रहा है। एक पंखे वाले ऑफिस से सेंट्रल एसी वाले बड़े से बड़े दफ्तर में काम कर लिया। लेकिन दिल आज भी जनरल डिब्बे में घूमना, रोडवेज में धक्के खाना, लोवर पहनकर शहर में घूमना, सड़क किनारे कहीं भी बैठकर खाने की इजाज़त देता है।

जाने कब कैसे हालात हो जाएं, इसलिए कहां से निकले हैं और किस कद्र मेहनत करके यहां तक पहुंचे हैं सब याद रहता है। इसलिए हर हाल में अल्लाह का शुक्र है। ये नेमतें भी कब तक हैं। नहीं मालूम, कोई बात नहीं। जब तक यहां रिज्क हैं, तब तक यहीं ठहराव है। बाकी बंदों का तो क्या है, बस ये समझ लीजिए मुझपर बस अल्लाह मेहरबान है। इस दिल में अल्लाह के अलावा किसी ज़ात का खौफ नहीं। यही मेरा ईमान है और यही अपना गुरूर है। 🙂