पं. गाेविंद बल्लभ पंत (Pt. Govind Ballabh Pant) की 10 सितंबर को 136वीं जयंती मनाई जाएगी। वह उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री होने के साथ ही देश के गृह मंत्री भी थे। इन उपलब्धियों के बाद उनका गांव अल्मोड़ा का खूंट गांव आज भी उपेक्षित है।
अल्मोड़ा : पं. गाेविंद बल्लभ पंत (Pt. Govind Ballabh Pant)। भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाला सिपाही। आजादी के बाद देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने वाला राजनेता। ब्रिटिश हुकूमत में संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री और फिर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बाद में देश के गृह मंत्री का ताज पहनकर हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने वाला भारत रत्न। न जाने ऐसे कितने ओहदे और कामयाबी के सितारे हैं, जो पंडितजी के कंधे पर सजकर लोगों को प्रेरणा देते हैं।
मगर दुख भी होता है कि देश के इस भारत रत्न का पैतृक गांव खूंट (Khoont Village) उपेक्षित है। रोजगार के अभाव और खेती-बाड़ी खत्म होने से युवा लगातार गांव से पलायन करते जा रहे है। मूलभूत समस्याओं का भी अंबार लगा हुआ है। पंडित जी की जयंती 10 सितंबर पर इस बार बात उनके गांव और उनके गांव के लोगों की।
भारत रत्न प. गोविंद बल्लभ पंत (Bharat Ratna Pt. Govind Ballabh Pant) की शनिवार 10 सितंबर को 136वीं जयंती मनाई जाएगी। प. पंत का जन्म अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक पढ़ाई रैमजे इंटर कालेज में की। उसके बाद वह इलाहबाद चले गए। जहां वह पढ़ाई के साथ ही आजादी के आंदोलन से जुड़ गए। आजादी के बाद प. पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने, तब यहां के लोगों को लगा कि अब खूंट गांव का विकास होगा। तब गांव भी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था। लेकिन पंत के मुख्यमंत्री बनने के 70 साल बाद भी गांव उपेक्षित ही है।
70 साल बाद भी गांव मुख्यधारा से कटा,खूंट गांव (Khoont Village) में करीब 350 परिवार रहते थे। करीब 200 से अधिक युवा रोजगार के लिए बाहरी राज्यों में हैं। गांव में रोजगार के कोई साधन नहीं है। एक मनरेगा था। उसमें भी पिछले एक साल से कोई कार्य नहीं मिल रहा है। सरकार से पैसा नहीं मिल रहा तो कार्य भी नहीं हो रहा है। गांव में पेयजल की काफी समस्या है। अधिकतर लोग पानी के लिए नौलों पर ही निर्भर हैं। हर घर जल, हर घर नल योजना धरातल में नहीं उतर पाई। बंदरों, सुअरों ने खेतीबाड़ी को बर्बाद कर दिया है। जिस कारण लोगों ने अब कृषि करना बंद कर दिया है। स्कूलों में शिक्षकों का भी अभाव ही है। बैंकिंग सेवा के लिए लोगों को 20 किमी दूर मुख्यालय के चक्कर काटने पड़ते हैं।
मूलभूत समस्याओं का अभाव है। पानी तक की व्यवस्था नहीं है। रोजगार के कोई साधन नहीं। पैसे के अभाव में अब मनरेगा से भी कार्य नहीं हो रहे हैं। ऐसे में हालातों का अंदाजा खुद लगाया जा सकता है।
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